माननीय,
हमारे साहित्य-समाज में अब्दुल बिस्मिल्लाह की उपस्थिति विशिष्ट है। उनको पढ़ने का अर्थ है—अपने ही समाज के कमदेखे-अनदेखे हिस्से की नब्ज़ को महसूस करना; अपने ही अजाने चेहरे से रू-ब-रू होना। उनकी कथाभूमि गाँवों-कस्बों से लेकर शहरों तक फैली है लेकिन उसमें सबसे अहम है इंसानी चेतना, जो सामाजिक-सांस्कृतिक जड़ताओं से टकराती है, कभी टूटती है तो कभी पूरे आत्मबल के साथ टिके रहने की कोशिश करती है। उनका लेखन यथार्थ की जड़ता को केवल दर्ज नहीं करता, बल्कि उसमें छिपी परिवर्तन की सम्भावनाओं को भी टटोलता है।
अपने इस अप्रतिम कथाकार के 75वें वर्ष में प्रवेश करने पर हम उनकी रचनात्मक यात्रा का उत्सव मना रहे हैं।
इस अवसर पर उनकी संस्मरणों की पुस्तक ‘स्मृतियों की बस्ती’ का लोकार्पण भी होगा।
आपकी उपस्थिति आयोजन को गरिमा प्रदान करेगी।
— अशोक महेश्वरी
अध्यक्ष, राजकमल प्रकाशन समूह
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