19 जुलाई को अस्मिता थियेटर का चर्चित नाटक 'अंधा युग' नाटक देखिए।
डॉ. धर्मवीर भारती द्वारा लिखित क्लासिक नाटक 'अंधा युग' का 19 जुलाई को सायं 7बजे, श्री राम सेंटर, मंण्डी हाउस, नई दिल्ली में मंचन होगा।
अस्मिता थियेटर ग्रुप द्वारा प्रस्तुत इस नाटक का निर्देशन अरविन्द गौड़ ने किया हैं। संगीत डॉ. संगीता गौड़ का हैं। कास्टयूमस् व प्रोडक्शन नियंत्रक काकोली गौड़ नागपाल है।
Tickets: ₹100/-, ₹200/-, ₹300/-, ₹350/- टिकट बुक माई शो पर उपलब्ध है।
https://in.bookmyshow.com/plays/hindi-play-andha-yug/ET00370820
मुख्य कलाकार:
गांधारी: सावेरी श्री गौड़, अश्वत्थामा: प्रभाकर पांडेय, धृतराष्ट्र: करण खन्ना, विदुर: साहिल मुखी, संजय: रावल सिंह मंधाता चौहान, कृतवर्मा: अशुतोष सिंह, कृपाचार्य: अंकुर शर्मा, युयुत्सु: संजीव सिसोदिया, बूढ़ा भविष्य वक्ता: यानसिन हेमलता, प्रहरी: आशुतोष यादव, रितेश ओझा, बलराम: जीतेंद्र कुमार, गूंगा सैनिक: सुमित आनंद, युधिष्ठिर: विनोद पानेसर।
सहयोगी एक्टर: अर्पणा पौराणिक, आकांशा तिवारी, खुशबु चोपड़ा, करूणा शर्मा, सिमरन पवार, तब्बसुम बी तब्बू , ईशिका, निकिता तोमर, हेमन्त मिश्रा, दीपक जोशी, अभिषेक शर्मा, अरुण पंघाल, गौरव सांटोलिया, अमित उपाध्याय, विभोर विक्रम सिंह, प्रथम बाम्बा, सक्षम अरोड़ा, रजत शांडिल्य, आरव शर्मा, रवि कौशिक, शाहरुख अली, लवकुश पाल, शाहदाब खान चौधरी, अजय कांता, दिव्यांशु यादव, वैभव गिर्हे, योगेश गोठवाल, विष्णु शर्मा, कृष्णा भंडारी, अनमोल चौहान, सम्भव कश्यप, नरेन्द्र शर्मा, प्रथम सुखपाल, आकाश अग्रवाल, अमरजीत कुमार, शशिकांत तिवारी, अभिषेक दुबे और अस्मिता थियेटर ग्रुप।
संगीत निर्देशक: डाॅ संगीता गौड।
आवाज- व्यास: बजरंग बली सिंह, कृष्ण: प्रिंस नागपाल। संगीत रिकार्डिंग व प्रबंधनः सेंड़ी सिंह, कास्टयूमस् व प्रोडक्शन नियंत्रक: काकोली गौड़ नागपाल।
अस्मिता थियेटर की प्रस्तुति।
अस्मिता थियेटर: प्रतिबद्ध रंगकर्म के बेमिसाल 32 साल।
अंधा युग नाटक की समकालीन सामाजिक, राजनीतिक और वैश्विक परिस्थितियों में प्रासंगिकता।
अंधा युग 1953 में लिखा गया एक प्रसिद्ध पद्य नाटक है, जिसे प्रख्यात उपन्यासकार, कवि और नाटककार डॉ. धर्मवीर भारती ने हिंदी में लिखा था। यह नाटक महाभारत के युद्ध के अंतिम दिन की घटनाओं पर आधारित है। यह केवल एक ऐतिहासिक या पौराणिक कथा नहीं है, बल्कि युद्ध और उसके परिणामों के माध्यम से मानवीय इच्छाओं, नैतिक द्वंद्व, लोभ-लालच, सत्ता संघर्ष, द्वेष और समाज में फैली आत्मवंचना को उजागर करता है।
यह नाटक युद्ध की विभीषिका और उसके पीछे छिपे मानव अहंकार, सत्ता की भूख, जाति, धर्म और धन की लालसा को उजागर करता है। यह दिखाता है कि जब समाज इन तत्वों के वशीभूत होकर तर्क, करुणा और नैतिकता को त्याग देता है, तब परिणाम केवल विनाश, मोहभंग, निराशा और विध्वंस ही होते हैं, ठीक उसी तरह जैसे महाभारत के युद्ध में हुआ था, जहाँ अंततः सभी कुछ नष्ट हो गया।
'अंधा युग" आज के समय में और भी अधिक प्रासंगिक हो गया है। जब हम देखते हैं कि दुनिया भर में राजनीतिक द्वेष, धार्मिक उन्माद, जातीय हिंसा, और सत्ता के संघर्ष लगातार बढ़ते जा रहे हैं, तब यह नाटक एक चेतावनी की तरह सामने आता है। यह बताता है कि यदि मानवता, संवेदना और आपसी सह-अस्तित्व के मूल्यों** को भुला दिया जाए, तो समाज एक अंधे युग** की ओर ही अग्रसर होता है, जहाँ न कोई आशा बचती है, न विश्वास, न इंसानियत।
यह नाटक आज के राजनैतिक कर्णधारों , समाज और नागरिकों को एक गहरा संदेश देता है कि युद्ध किसी भी रूप में हो, विचारधारा का, धर्म का, जाति का या सत्ता का, अंततः वह सब कुछ नष्ट कर देता है।
अंधा युग एक युद्ध-विरोधी नाटक होने के साथ-साथ मानवता, करुणा, आत्मचिंतन और नैतिक पुनर्जागरण का संदेश भी देता है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम अहंकार और स्वार्थ की राजनीति से ऊपर उठकर एक ऐसे समाज की कल्पना करें जहाँ संवेदना और समानता के मूल्य सर्वोपरि हों।
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