""""काम और आराम"""
"काम" और "आराम" दोनों को साथ में,
रहने का आदेश मिला था।
परंतु दोनों का आपस में बनती कम,
और बिगड़ती ज्यादा थी।
"काम" को काम करना पड़ता था,
और "आराम" बस दिनभर आराम फरमाता रहता था।
"काम" बिचारी सुबह उठती,
हाथ में झाङू, सुबह का नास्ता, दोपहर का भोजन,
और तो और "आराम" के लिए
बिस्तर की चाय, ब्रश में पेस्ट, कपड़े में इस्त्री आदि
सबकुछ बिचारी काम के पल्ले था।
फिर "आजादी" और "फर्माइश"
को स्कूल के लिए तैयार करना, और उनका
लालन-पालन भी,
"काम" के ही हिस्से था।
सब प्रातःकालीन कार्यो का निपटारा करके, "काम"
को काम पर भी जाना रहता था।
बाजार से सब्जियाँ लाना, घर और रसोई का
घटा-बढ़ा सामान लाने का कार्य भी "काम" को ही करना पड़ता।
शाम में आने के बाद, रात का खाना
बनाना भी "काम" का ही काम था।
और जब "आराम" अपनी ड्युटी से घर
वापस आता, तो "काम" को और काम दे देता।
"काम" बिचारी काम कर-कर के थक जाती,
पर मुंह से उफ तक न करती।
फिर भी "आराम" ""काम"" को ताने मारता रहता,
कि, तुम "दिनभर" करती ही क्या हो?
अब "काम" "आराम" की ताने सुन-सुन
कर आदि हो चुकी थी।
एक दिन अचानक "काम" की तबीयत बिगड़ गई,
डॉक्टर ने बेडरेस्ट लिखा और "काम" से आराम करने को कहा।
अब क्या था "आराम" का आराम हराम हो गया,
अब तक जो काम, "काम" को करने पड़ रहे थे।
वह सब "आराम" के हिस्से में आ गया,
4-5 दिनों में ही "आराम" के तोते उड़ गए।
फिर क्या था, "आराम" ""काम"" की
दिन-रात सेवा किया करता।
और इश्वर से "काम" की स्वास्थ्य
की "कामना" भी किया करता।
अब तो, "आराम" के द्वारा किए गए देखभाल
और प्यार से "काम" जल्द ही स्वस्थ हो गई।
तब "आराम" ने "काम" से अपने किए गए व्यवहार
के लिए क्षमा मांगी, और दोनों ने यह शपथ लिया,
कि अब से हम दोनों एक-दूसरे की परिस्थितयों को
समझेंगे और मिलजुलकर सारे काम किया करेंगे।
अब दोनों का "जीवन" शांति और प्रेम के साथ व्यतीत
होने लगा।
🙏धन्यवाद🙏