पिता की मृत्यु के बाद एक बेटे ने अपनी माँ को वृद्ध आश्रम में छोड़ दिया और कभी-कभी हफ्ते और महीने के बाद उनकी खबर लेने जाता रहता था। एक दिन वृद्ध आश्रम से फोन आया कि आपकी मां की तबीयत बहुत खराब है और उनका आखिरी समय चल रहा है, आप उनसे मिलने आ जाइये। बेटा भागा-भागा अपनी माँ से मिलने आया, माँ के पास आकर के बैठा और पूछने लगा माँ तुम्हें अगर कुछ चाहिए तो मैं तुम्हारे लिए लेकर के आता हूं। माँ बोली बेटा मुझे चाहिए तो कुछ नहीं पर हां यह जो वृद्धाश्रम है यहां की जो खिड़कियाँ है उनके शीशे टूटे हुए हैं वह शीशे तुम लगवा दो। यहां के जो बूढ़े लोग हैं वह बड़े परेशान होते हैं सर्दियों के समय में और गर्मियों में ठंडे पानी की व्यवस्था कर देना ताकि सब की प्यास आराम से बुझ सके। साथ ही यहां का जो खाने का है प्रबंध उसे थोड़ा ठीक करवाओ क्योंकि यहां पर खाना अच्छा नही मिलता और समय पर भी नहीं मिलता है। मैं 2-2 3-3 दिन यहां पर भूखी रहती थी। बेटा बोल माँ आज तक तो तुमने शिकायत नहीं की इन सब बातों की पर अब जब तुम अपने अंतिम समय में हो अब तुम्हें इन सब चीजों की याद आ रही है अब तुम शिकायत कर रही हो, तो माँ बोली बेटा बात ऐसी है कि मुझे तो इन सब चीजों की आदत हो गई है पर जब बुढ़ापे में तेरी औलाद तुझे यहां छोड़ेगी तो तू यह सब नहीं सह पाएगा क्योंकि मैंने तुझे बड़े नाज़ों से पाला है मैं नहीं चाहती कि तुझे कोई तकलीफ हो।
🌼🌼🌼आचार्य प्रभाकर वैदिक🌼🌼🌼
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