युवाओं में नया ट्रेंड — “मिनी रिटायरमेंट”
अब ज़िंदगी का मंत्र है — “ बुढ़ापे का इंतजार नहीं,जो चाहो, अभी करो!”
आज के समय में युवा पीढ़ी पारंपरिक रिटायरमेंट का इंतज़ार नहीं कर रहे हैं,
करियर की शुरुआत में ही कुछ महीने का ब्रेक लेकर खुद को “रीसेट” करते हैं।
इसे कई युवा “मिनी रिटायरमेंट” या “माइक्रो रिटायरमेंट” कहने लगे हैं।
अमेरिका में यह ट्रेंड तेज़ी से बढ़ रहा है, जिसमें लोग अपनी बचत का उपयोग लंबी छुट्टियाँ लेने और यात्राओं पर जाने में करते हैं — ताकि खुद को बेहतर तरीके से समझ सकें।
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर किरा शाब्राम कहती हैं,
अब लोग अपने संस्थान की मदद लिए बिना खुद ही ब्रेक ले रहे हैं। मिनी रिटायरमेंट आत्मविश्वास, स्पष्टता और बेहतर वर्क-लाइफ बैलेंस देता है।
न्यूयॉर्क की 27 वर्षीय इज़ाबेल फॉल्स ने 2023 में अपनी नौकरी छोड़कर एक साल की छुट्टी ली।
इस दौरान उन्होंने यात्रा की,
प्रकृति के करीब रहीं, और अब नौकरी छोड़कर मेक्सिको में एक ट्रैवल एजेंसी के लिए फ्रीलांस काम कर रही हैं।
उन्होंने कहा — “मैं यह नहीं सोचती कि अभी जी-जान से काम करो ताकि 55 की उम्र में रिटायर हो सको।
मैं अभी से खुश रहने की कोशिश कर रही हूँ।”
जॉन्स हॉपकिंस बिज़नेस स्कूल में मैनेजमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर
क्रिस्टोफर मायर्स मानते हैं कि:
अमेरिका में काम को जीवन से ऊपर रखने वाली संस्कृति के खिलाफ यह एक जवाब है।
अब युवा “जीयो और जीने दो” के विचार के साथ अपने करियर की योजना बना रहे हैं। पुराने समय का विचार — “रिटायरमेंट तक रुको” — अब धीरे-धीरे बदल रहा है।
दरअसल “मिनी रिटायरमेंट” का यह ट्रेंड सिर्फ करियर का नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन का संकेत है।
यह आधुनिक मनुष्य के “work-life ethics” और “meaning of life” की खोज से गहराई से जुड़ा हुआ है।
गांधीजी जिन्हें अपने गुरुओं में से एक माना है, उस हेनरी डेविड थॉरो की पुस्तक " द वाल्डेन " ने मुझे बहुत प्रभावित किया था। थोरो ने कहा था —
“I went to the woods because I wished to live deliberately.”
(“मैं जंगल इसलिए गया ताकि मैं सचेत होकर जी सकूँ।”)
हेनरी डेविड थॉरो का यह विचार “मिनी रिटायरमेंट” के मूल में है।
उन्होंने 19वीं सदी में ही यह सवाल उठाया था कि क्या जीवन सिर्फ काम, धन और सामाजिक मान्यता तक सीमित होना चाहिए?
मिनी रिटायरमेंट लेने वाले युवा भी आज थॉरो के वॉल्डन दर्शन की तरह जीवन की मूल अनुभूति — प्रकृति, आत्मसंवाद और सरलता — की ओर लौट रहे हैं।
युवा अब “career-ladder” की सीढ़ी चढ़ने के बजाय खुद से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं —
वे जानना चाहते हैं कि वे कौन हैं, क्या चाहते हैं, और किसके लिए काम करना सार्थक है।
एरिस्टोटल ने कहा था कि मानव जीवन का उद्देश्य Eudaimonia है — यानी “अच्छे जीवन की प्राप्ति”, जो केवल भौतिक सफलता से नहीं बल्कि आत्म-संतुलन, उद्देश्य और आंतरिक आनंद से आता है।
मिनी रिटायरमेंट उसी “यूडेमोनिक” दृष्टिकोण की पुनर्स्थापना है —
जहाँ व्यक्ति अस्थायी विराम लेकर यह समझना चाहता है कि उसका काम उसके जीवन के अर्थ से कितना जुड़ा है।
एरिक फ्रॉम ने आधुनिक पूंजीवाद की आलोचना करते हुए कहा था कि आज मनुष्य “to have” (अर्जन करने) के जीवन में फँस गया है, जबकि उसे “to be” (होने) के जीवन की ओर बढ़ना चाहिए।
मिनी रिटायरमेंट इस “to be” दर्शन का अभ्यास है —
जहाँ युवा अर्जन (money, promotion) से अधिक अनुभव (experience, travel, learning) को प्राथमिकता दे रहे हैं।
मिनी रिटायरमेंट केवल नौकरी से ब्रेक नहीं, बल्कि
“काम को जीवन के केंद्र से हटाकर, जीवन को काम के केंद्र में लाने की चेष्टा” है।
मनुष्य को आत्मसिद्धि, अर्थपूर्णता और जीवंत अनुभवों की आवश्यकता है —
न कि अंतहीन उत्पादकता की।