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गुरु गोबिंद सिंह जयंती सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती का उत्सव है। यह सिख समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है। इसका इतिहास और महत्व निम्नलिखित है:
गुरु गोबिंद सिंह का जीवन परिचय
जन्म: गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 (पौष मास, शुक्ल पक्ष, सप्तमी) को पटना साहिब (वर्तमान बिहार) में हुआ था।
- उनके बचपन का नाम गोबिंद राय था।
- वे नौ वर्ष की आयु में, 1675 में, अपने पिता गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान के बाद सिखों के दसवें गुरु बने।
- उन्होंने सिख धर्म को संगठित करने और सिखों को एक सैन्य शक्ति बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
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गुरु गोबिंद सिंह जी की प्रमुख उपलब्धियां
1.खालसा पंथ की स्थापना (1699):
- गुरु गोबिंद सिंह जी ने 13 अप्रैल 1699 को बैसाखी के दिन **आनंदपुर साहिब** में खालसा पंथ की स्थापना की।
- उन्होंने "पाँच प्यारों" का चयन किया और अमृत छकाकर सिखों को एक नयी पहचान दी।
- सिखों को सिंह (पुरुष) और कौर (महिला) का नाम देकर उन्हें निडर और समानता का प्रतीक बनाया।
2. पाँच ककार:
- गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों को पाँच चिह्नों (केश, कड़ा, कृपाण, कंघा, कच्छा) को धारण करने का आदेश दिया, जिन्हें **पाँच ककार** कहा जाता है।
3. आध्यात्मिक और सैन्य योगदान:
- उन्होंने सिख समुदाय को आत्मरक्षा और अत्याचार के खिलाफ लड़ने के लिए प्रशिक्षित किया।
- गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुगलों और हिल रियासतों के शासकों के साथ कई युद्ध लड़े।
4. **ग्रंथ साहिब को अंतिम गुरु घोषित करना:**
- 1708 में अपने अंतिम दिनों में, गुरु गोबिंद सिंह जी ने **गुरु ग्रंथ साहिब** को सिखों का अंतिम और शाश्वत गुरु घोषित किया।
**गुरु गोबिंद सिंह जयंती का महत्व**
- यह दिन सिख समुदाय द्वारा उनके जीवन और शिक्षाओं को स्मरण करने और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए मनाया जाता है।
- इस दिन **गुरुद्वारों** में कीर्तन, अरदास, और लंगर का आयोजन किया जाता है।
- लोग उनकी शिक्षाओं, वीरता और बलिदानों को याद करते हैं।
**इतिहास में गुरु गोबिंद सिंह जी का योगदान**
गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन संघर्ष, साहस और धर्म की रक्षा के लिए समर्पित था। उन्होंने न केवल सिख धर्म को मजबूती दी, बल्कि न्याय, समानता और मानवता के सिद्धांतों की स्थापना की।
उनका जीवन और शिक्षाएं सिख धर्म के अनुयायियों और अन्य लोगों को प्रेरित करती हैं।