पानी प्यास बुझाने का साधन नहीं, बल्कि प्राकृतिक औषधि भी !
पानी को आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान दोनों में ही जीवन का आधार माना गया है। मानव शरीर का लगभग 70% हिस्सा पानी से बना है। यही कारण है कि इसे "प्राकृतिक औषधि" भी कहा गया है। पानी केवल प्यास बुझाने का साधन नहीं, बल्कि यह रक्त प्रवाह, पाचन, मेटाबॉलिज़्म, शरीर की सफाई और कोशिकाओं को ऊर्जा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
शरीर में पानी की भूमिका
स्वस्थ व्यक्ति को रोज़ाना 2.5 से 3 लीटर पानी लेना चाहिए।
1. रक्त संचार रक्त का 90% हिस्सा पानी है, जो ऑक्सीजन और पोषण को अंगों तक पहुचाता है।
2. डिटॉक्सिफिकेशन गुर्दे (किडनी) पानी की मदद से शरीर की गंदगी और यूरिक एसिड जैसे विषैले बाहर निकालते हैं।
3. पाचन में सहायक भोजन को पचाने, एंज़ाइम एक्टिवेट करने और कब्ज से राहत में पानी की अहम भूमिका होती है।
4. तापमान संतुलन पसीने के रूप में शरीर को ठंडा रखता है।
5. चमकदार त्वचा पर्याप्त पानी त्वचा को हाइड्रेटेड रखता है और झुर्रियों से बचाता है।
6. मस्तिष्क कार्य दिमाग का लगभग 80% हिस्सा
पानी है। पानी की कमी से चिड़चिड़ापन, थकान और ध्यान केंद्रित करने में समस्या होती है।
पानी पीने के सही समय
1. सुबह खाली पेट - रातभर का जमा हुआ विषैले तत्व बाहर निकालने के लिए 1-2 गिलास गुनगुना पानी।
2. भोजन से 30 मिनट पहले पाचन शक्ति को बढ़ाने के लिए।
3. भोजन के 1 घंटे बाद में मदद करता है। पाचन पूर्ण होने में मदद
4. व्यायाम के बाद डिहाइड्रेशन से बचाने के लिए।
5. सोने से पहले दिल और मस्तिष्क को संतुलित रखने के लिए (लेकिन बहुत अधिक नहीं)।
पानी का आयुर्वेदिक महत्व
आयुर्वेद में पानी को "जीवन रसायन" कहा गया है। इसमें तीन तरह के सेवन बताए गए हैं:
1. गर्म पानी जठराग्नि बढ़ाता है, वजन घटाने में मददगार।
2. शीतोदक (ठंडा पानी) पित्त और शरीर की गर्मी को संतुलित करता है।
3. औषधीय (हर्बल वाटर) तुलसी, सौंफ, जीरा, धनिया यह बीमारियों से बचाव करता है। डालकर उबाला गया पानी
आयुर्वेद में पानी को "अग्नि-शामक" माना गया है। इसका अर्थ है कि यह शरीर में उत्पन्न अतिरिक्त पित्त (heat, acidity, irritability) को शांत करता है।
तांबे के बर्तन में रातभर रखा पानी सुबह पीने से शरीर में त्रिदोष संतुलन (वात-पित्त-कफ) होता है। यह पानी प्राकृतिक रूप से एंटी- बैक्टीरियल और लिवर टॉनिक माना गया है।
चरक संहिता में कहा गया है कि भोजन के बाद गुनगुना पानी पीना औषधि है, जबकि बहुत ठंडा पानी तुरंत पीना विष के समान हानिकारक है।
प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि चंद्रमा का प्रभाव जल पर पड़ता है। इसलिए पूर्णिमा की चांदनी रात में रखा पानी (Moon-charged water) पीने से मन शांत होता है और नींद गहरी आती है।
प्राचीन आयुर्वेदिक साधक सप्ताह में एक दिन केवल पानी पर रहते थे। इसे "जल उपवास" कहा गया, जो शरीर से अम्ल, यूरिक एसिड और विषैले को बाहर निकालता है।
प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है कि शुद्ध, ठंडा (natural) व ताजगी भरा पानी मस्तिष्क को प्रसन्न व स्मृति-वर्धक बनाता है।
यदि किसी रोगी को अन्य औषधि उपलब्ध न हो, तो आयुर्वेद में सबसे पहले शुद्ध जल का सेवन और स्नान की ही सलाह दी गई है। क्योंकि जल अपने आप में सबसे बड़ा शोधनकारी (detoxifier) है।
सूर्य की किरणों में में में रखा हुआ पानी (सूर्य-तप्त जल) शरीर में विटामिन D का अवशोषण बढ़ाता है, और रोग-प्रतिरोधक शक्ति (immunity) मजबूत करता है।
सही समय, सही मात्रा और सही तरीके से पानी का सेवन करना -एक प्रकार से दीर्घायु का मंत्र है।