🌻🥀🌺🌸🌻🌹☘️🌳🌺🌸🌻🌹💐🌸
🌲🌻🥀🌺🌸🌻🌹☘️🌳🌺🌸🌻🌹🌸
*मां की बारहवीं पुण्य तिथि*
*मां तुझे प्रणाम *
मां,,,
हमारे बचपन और
युवापन की कहानी सुनाती थी
हमारी शैतानियों
हमारी उपलब्धियों को याद कर
मुस्कुराती और हंसती थीं
एक बार हम सब लोग
एक साथ बैठे
पुरानी स्मृतियों के पन्ने पलट रहे थे
तभी मैंने मां से कहा,,
मां,,,
आप हम सब की बात बताती हैं
आज आप कुछ
अपने बारे में बताइये
अपने बचपन अपने युवापन के
कुछ किस्से सुनाईये,,
अपने मायके और ससुराल की
खुशियों और दुश्वारियों के बारे में बताइये
मां,,,
यह सुन अचम्भे में पड़ गईं
शायद वे ऐसे प्रश्नों का उत्तर देने में
तत्काल सहज न थीं
लेकिन,,,
मेरी मां खुले विचारों की थी
सो मुस्कुराई,,
फिर धीमें से बोली,,
मैं अपने भाईयों की
इकलौती बहन थी
सब बहिना कहकर मुझे बुलाते थे
मैं भी उन्हें कभी नाम से
कभी बाबू बुलाती थी
भाभियों का भरपूर प्यार मिलता रहा
मैं उनकी प्यारी बड़ी ननद थी और
दीदी के नाम से जानी जाती थी
मेरी हर बात को
सब दिल से मानते थे
मैं मां-बाप की प्यारी थी
नाना की दुलारी थी
कभी अपने गांव तो
कभी ननिहाल मे विचरती थी
छोटी उम्र में ससुराल चली आई
सास ससुर की बाबू और
बाबू बो का खिताब पा निहाल हो आई
मेरी ननदें और मेरे देवर
मुझे बहुत आदर देते थे
मुझमें भाभी मां की छवि देखते थे
नई जगह
नया परिवेश
नई उम्मीदें
ससुराल के हर सदस्य के लिए
नई-नई परविशें
सब कुछ इतना आसान न लगता था
मन में अजीब डर और
दिल परेशान रहता था
लेकिन,,
मैं भाग्य की धनी थी
तुम लोगों के पिता के सज्जनता की ऋणी थी
हर कदम पर उन्होने साथ दिया
कभी अपनी बराबरी में
तो कभी और ऊंचा स्थान दिया
उस समय गैस चूल्हा न हुआ करता था
सूखी और गीली लकड़ियों से
चूल्हा जलता और
भोजन पकता था
पीतल की बटलोई में घंटों दाल पकती थी
धुयें और चूल्हे की लपट से
मेरी आंखे सिसकती थी
गाहे बगाहे घर आंगन भी बुहारती
लेकिन,,आ जाए कोई पारिवारिक सदस्य या रिश्तेदार
तो सहज भाव से,,,
चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती
सिलबट्टे पर मसाले पीसती
साड़ी के पल्लू से पसीने पोंछती
व्यंजनों की फरमाइशों की फेहरिस्तें मिलती
फिर भी,,मैं भी हार न मानती
खुद को मजबूत समझती
अपना दायित्व मान
लगन और प्रयास से
महारथ हासिल कर प्रशंसा पाती
मां ये बता कर चुप हो गई
फिर अचानक
मां बहुओं को देखकर मुखातिब हुई,,
मुस्कुराई और फिर
शरारती लहजे में धीरे से बोली,,
घूँघट से पूरी दुनिया देखती थी मैं
लेकिन,,
जानती हो तुम लोग
जब तुम्हारे पिता जी से नजर मिल जाती
तब तो,,
मैं यूं ही रीझ जाती
यह कह मां ने साड़ी के पल्लू में
अपना मुंह छिपा लिया
बहुओं के साथ हमने
मां की ये अदा देख
हंस हंस कर बुरा हाल कर लिया
हमें याद है
मां,,,आचार,पापड़,मुरब्बे
जैम जेली साॅस बड़े मनोयोग से बनाती थी
थोड़ा बहुत घर में रख कर
शेष औरों में बांट आती थी
जाड़ा, गर्मी हो या बरसात
सुबह हो या सांझ
मां अपनी सुविधा से सूती साड़ी में दिखती
लेकिन उत्सव पार्टियों में
मां की साड़ी हो या खुद मां
उससे सुंदर दूसरी कोई स्त्री न दिखती
मां खाना बनाने,
खिलाने के साथ ही
अच्छा खाने, फिल्में देखने,घूमने की भी
बेहद शौकीन थी
आइसक्रीम और कोल्ड ड्रिंक में
अपने पोते पोतियों को भी
बहुत पीछे छोड़ देती थी
आज भी जब उनकी पोतियां
शादी में आइसक्रीम लेने जाती हैं
मानस पटल पर
दादी की छवि आते ही
उनकी आंखे नम हो जाती हैं
देवांश भी जब खेलकर
पसीने से तर-बतर होता है
दादी का आंचल न पाकर
उदास हो लेता है
मा॔,,,
जीवनपर्यन्त घर की चहारदीवारी में रही
पर उसके चेहरे पर
शिकायत की कोई लकीर ना आई
आज तक कोई ये जान ना पाया कि
मां इतना स्नेह,प्रेम,
आदर सत्कार,त्याग,विश्वास और धैर्य
कहां से ले आई थी
जिससे उसकी जिंदगी,,
बिना किसी खटपट के गुजर गई थी
यूं तो,,
मां हम सबको रोज याद आती हैं
लेकिन मां की पुण्य तिथि
हमें झकझोर जाती है,,,,
काश मां ,,,
आप हम लोगों के साथ रहती तो
हम सब यूं ही नहीं बिलखते
तेरे चरणों में अपने श्रद्धा सुमन रख
हम यूं ही न सिसकते
*मां तुम्हें प्रणाम*
*मां तुम्हें प्रणाम*
डाॅ राम मनोहर मिश्र
12.6.2025
🌻🥀🌺🌸🌻🌹☘️🌳🌺🌸🌻🌹💐🌸
🌲🌻🥀🌺🌸🌻🌹☘️🌳🌺🌸🌻🌹🌸