*भगवत् चिंतन की सलाह* 13
....जब परीक्षित ने इस प्रकार पूछा तब शुकदेव जी, बहुत प्रसन्न हुए, और बोले राजेन्द्र! तुम्हारा प्रश्न उत्तम है, इस प्रश्न के उत्तर से तुम्हारे साथ जनसाधारण भी हित है। हे परीक्षित ! जो लोग कल्याण चाहते हो उनके लिए तो सर्वात्मा सर्वशक्तिमान भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का ही गान, श्रवण और की करना चाहिए।
*एतावान् सांख्ययोगाभ्यां स्वधर्मपरिनिष्ठया।* *जन्मलाभः परः पुंसामन्ते नारायणस्मृतिः।। (2/1/6)*
... मानव जन्म का इतना ही लाभ है कि चाहे जैसे हो अपने धर्म से निष्ठा से जीवन को ऐसा बना ले कि मृत्यु के समय नारायण स्मृति बनी रहे।
चाहे सांख्य या भक्तिमार्गी हो या गृहस्थ हो सभी को एकही सलाह है कि प्रेम से श्री हरि के नामों का कीर्तन करे।
हे परीक्षित ! भगवान की भक्ति तो दो घड़ी में मिल सकती है, तुम्हारे पास तो 7 दिन है इसी बीच तुम स्वकल्याण के लिए जो करणीय हो उसे कर लो।
मृत्यु के समय घबड़ाये नहीं। वैराग्य रूपी तलवार से ममता मोह को काट डाले। धैर्य से घर से निकल तीर्थ के जल से स्नान करे और पवित्र तथा एकांत स्थान में विधिपूर्वक आसन लगा कर बैठ जाय। उसके बाद स्वास को देखे ध्यान में चित्त को स्थिर कर ॐ इस प्रणव का मन ही मन जप सुरु करे। स्वास पर नियंत्रण कर मन का दमन करे और एक क्षण के लिए भी ॐ को न भूले।मन को भगवान के मंगलमय रूप में लगाये। उनके श्री विग्रह के एक एक अंग के ध्यान करे।मन को भगवान में इतना तल्लीन कर दे कि बिषय चिंतन रुक जाय।भगवान का विष्णुपद वही है, जिसमे मन पूर्ण रूपेण भगवान के चरणकमलों मे लग जाय।
ध्यान के समय अगर मन भटके तो मन को याद दिलायें कि मै ध्यान मे हूं।इस धारणा के स्थिर होते ही भक्ति योग की प्राप्ति हो जाती है।
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