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उत्तराखंड में भूकंप का खतरा: गढ़वाल और कुमाऊं पर विशेष जोखिम।

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#एनजीआरआई के अध्ययन के अनुसार उत्तराखंड में भूकंप का खतरा: गढ़वाल और कुमाऊं पर विशेष जोखिम

नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनजीआरआई), हैदराबाद के वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों में भूकंप के बढ़ते खतरे को लेकर एक गंभीर अध्ययन किया है। यह अध्ययन हिमालय क्षेत्र की टेक्टोनिक गतिविधियों और ऐतिहासिक भूकंपीय आंकड़ों पर आधारित है, जिसमें कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।

#मुख्य निष्कर्ष

1. गढ़वाल और कुमाऊं अलग-अलग भूकंपीय जोन : एनजीआरआई के अध्ययन से पता चला है कि गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र भूकंप के लिहाज से अलग-अलग सेगमेंट में आते हैं। यानी इन दोनों क्षेत्रों में आने वाले भूकंपों की तीव्रता (मैग्नीट्यूड) अलग-अलग हो सकती है ।

2. सिस्मिक गैप की स्थिति : पिछले 500-600 वर्षों में इस क्षेत्र में कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है, जिससे यहाँ "सिस्मिक गैप" (भूकंपीय अंतराल) की स्थिति बन गई है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इससे भविष्य में एक बड़े भूकंप की संभावना बढ़ गई है ।

3. मेन हिमालयन थ्रस्ट में ऊर्जा संचय : उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र की सतह से लगभग 18 किलोमीटर नीचे मेन हिमालयन थ्रस्ट (MHT) में ऊर्जा एकत्र हो रही है, जो अभी "लॉक्ड" स्थिति में है। यह ऊर्जा किसी भी समय एक बड़े भूकंप के रूप में बाहर आ सकती है ।

#तकनीकी विवरण

- **हिमालय का खिसकाव: जीपीएस डेटा से पता चला है कि हिमालय उत्तर से दक्षिण की ओर खिसक रहा है। सामान्य गति 40 मिमी प्रति वर्ष है, लेकिन कुमाऊं के टनकपुर से देहरादून के बीच यह गति केवल 14-18 मिमी प्रति वर्ष है। इस धीमी गति से पृथ्वी का संकुचन (कॉन्ट्रैक्शन) हो रहा है, जो भूकंपीय ऊर्जा के संचय का संकेत है ।

- #ऐतिहासिक भूकंप : कुमाऊं मंडल में 1334 और 1505 में 7-8 रिक्टर स्केल के भूकंप आ चुके हैं, जबकि गढ़वाल में 1803 में लगभग 7.8 तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया था। इसके बाद से कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है ।

- #संभावित तीव्रता : वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि इस क्षेत्र में भूकंप आता है तो इसकी तीव्रता 7-8 रिक्टर स्केल तक हो सकती है, जो तुर्की में हाल ही में आए भूकंप (7.8) के समान या अधिक विनाशकारी हो सकता है ।

#क्यों है खतरा?

- #टेक्टोनिक प्लेटों की गति : भारतीय टेक्टोनिक प्लेट यूरेशियन प्लेट के नीचे प्रति वर्ष लगभग 5 सेमी की दर से खिसक रही है, जिससे हिमालय क्षेत्र में तनाव बढ़ रहा है ।

- #भूकंपरोधी उपायों की कमी : उत्तराखंड में अधिकांश निर्माण कार्य भूकंपरोधी मानकों के अनुरूप नहीं हैं, जिससे तबाही का खतरा और बढ़ जाता है ।

#वैज्ञानिकों की सलाह

वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि:
1. भूकंपरोधी निर्माण तकनीकों को अपनाया जाना चाहिए।
2. जीपीएस स्टेशनों और भूकंप मॉनिटरिंग नेटवर्क को बढ़ाया जाना चाहिए ।
3. जनता को भूकंप सुरक्षा के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए ।

#नोट : हालांकि वैज्ञानिक भूकंप की सटीक भविष्यवाणी नहीं कर सकते, लेकिन उनका मानना है कि उत्तराखंड विशेष रूप से गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों में एक बड़े भूकंप का खतरा बना हुआ है ।



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